Lekhika Ranchi

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भारत के महापुरुषों की जीवनी


राजगुरु


 
★★★ जन्म :
 
24 अगस्त, 1908, पुणे, महाराष्ट्र
 
★★★ स्वर्गवास :
23 मार्च, 1931, लाहौर
 
★★★ उपलब्धियां :
स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूँगा का उद्घोष करने वाले बाल गंगाधर तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। पुणे का वह खेड़ा गाँव जहाँ राजगुरु का जन्म हुआ था, उसे अब राजगुरु नगर के नाम से जाना जाता है।

शिवराम हरि राजगुरु भारत के प्रसिद्ध वीर स्वतंत्रता सेनानी थे। ये सरदार भगत सिंह और सुखदेव के घनिष्ठ मित्र थे। इस मित्रता को राजगुरु ने मृत्यु पर्यंत निभाया। देश की आजादी के लिए दी गई राजगुरु की शहादत ने इनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवा दिया। 

राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की शहादत आज भी भारत के युवकों को प्रेरणा प्रदान करती है। सांडर्स हत्याकाण्ड:भगत सिंह और सुखदेव, ये दोनों राजगुरु को अपना सबसे अच्छा साथी मानते थे। दल ने लाला लाजपत राय की मृत्यु के जिम्मेदार अंग्रेज़ अफ़सर स्कॉट का वध करने की योजना बनायीं। 

इस काम के लिए राजगुरु और भगत सिंह को चुना गया। राजगुरु तो अंग्रेजों को सबक सिखाने का अवसर ढूँढ़ते ही रहते थे, अब वह सुअवसर उन्हें मिल गया था। 19 दिसंबर, 1928 को राजगुरु, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद ने सुखदेव के कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप जे. पी. सांडर्स नाम के एक अन्य अंग्रेज़ अफ़सर, जिसने स्कॉट के कहने पर लाला लाजपत राय पर लाठियाँ चलायी थीं, का वध कर दिया। कार्यवाही के पश्चात भगत सिंह अंग्रेज़ी साहब बनकर, राजगुरु उनके सेवक बनकर और चंद्रशेखर आज़ाद सुरक्षित पुलिस की दृष्टि से बचकर निकल गए।
शहादत:राजगुरु को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे लाहौर के केंद्रीय कारागार में उनके दोस्तों भगत सिंह और सुखदेव के साथ फ़ाँसी पर लटका दिया गया। इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था। यह भी माना जाता है कि इन तीनों क्रांतिकारियों की फाँसी की तिथि 24 मार्च निर्धारित थी, लेकिन अंग्रेज़ सरकार फाँसी के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों से घबरा रही थी। इसीलिए उसने एक दिन पहले ही फाँसी दे दी।

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